दर्पण

नितेश कुमारी कल्पनाओं का संसार लिये आकांक्षाओं का अंबार लिये तुम एक स्वर्ण स्वप्न की भांति अश्वासों को उन्मुक्त करातीं। मझधारों में फंसी मेरी किस्मत हृदय के रुदन सी उठती तुम्हारी हसरत ये ठरार्रती – गरजती लहरें दम तोड़ती मेरी यादें तुम्हारे स्वप्न का ही तो अंश हैं। जो बाहर है, वह भीतर नहीं जोContinueContinue reading “दर्पण”

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